रुपक सेठ की धुन | पंचतंत्र की कहानियाँ
एक छोटा-सा नगर था, जिसमें एक व्यापारी रुपक रहता था। रुपक के
पिता उसके लिए काफी धन और अच्छा व्यापार छोड़ कर गये थे, किन्तु फिर भी
उसके दिल में और अमीर बनने की लालसा बनी हुई थी। यही सोच हर समय
उसके दिमाग में घूमती रहती थी।
अधिक धनवान कैसे बनूं? धनवान बनने के लिए कौन-कौन से रास्ते हैं।
वह रातों को चारपाई पर लेटा-लेटा यही सोचा करता था कि अधिक अमीर कैसे
बनूं। काफी सोच-विचार के बाद उसे विदेशों में व्यापार करने का विचार आया।
दूसरे ही दिन उसने साथियों को इकट्ठा करके योजना को विस्तार से
बताया और इन सबने यह फैसला कर लिया कि इस छोटे कस्बे में हम किसानों
से सस्ता अनाज और लकड़ियाँ आदि खरीदकर बड़े शहर में ले जाकर मंहगे भाव
में बेचेंगे। इस प्रकार हम अमीर बन जायेगें।
क्योंकि रुपा पहले से ही गाँव में धनी माना जाता था। उसकी बात सुनते ही
सभी साथी खुश हो गए और रुपा के साथ जाने को तैयार भी।। बस फिर क्या था,
देखते-ही-देखते सारी तैयारियां पूरी हो गई। एक मजबूत सी बैलगाड़ी खरीदी
गई, जिसमें गाँव वालों से सस्ते दामों पर माल खरीदकर भर लिया गया। उस
गाड़ी को खींचने के लिए बढ़िया बैल खरीदे गए।
इस प्रकार से रुपा सेठ अपने साथियों के साथ उस माल से भरी बैळ गाड़ी
को लेकर शहर की ओर चल पड़ा।
बैलगाड़ी पर बोझा कुछ अधिक लाद दिय गया था, जिसका फल यह निकला
कि घने जंगल में जाकर एक बैल मूर्छित होकर गिर पड़ा। उसकी एक टांग भी टूट
गई। इस प्रकार रूपा और उसके साथी काफी चिंतित हो गए। वे करते भी क्या?
चिंता के मारे उसका बुरा हाल हो रहा था। एक ओर तो घने जंगल में जंगली
जानवरों का डर, दूसरी ओर चोरों का अत: रूपा ने बैल को उसके हाल पर वहीं
छोड़ दिया और किसी प्रकार अपने साथियों की मदद से आगे बढ़ा।
दूसरी ओर जख्मी बैल जंगल की हरी-भरी घास और ताजी हवा खा
खाकर दिन-प्रतिदिन ठीक होता गया। उसकी टांग भी धीरे-धीरे ठीक हो गई।
अब वह जंगल में खाता-पीता मौज मारता, रात को किसी वृक्ष के नीचे जाकर सो
जाता। इस प्रकार वह कुछ ही दिनो में मोटा-ताजा हो गया। उसे देखकर ऐसा
लगता था जैसे वह बैल ही वास्तव में इस जंगल का राजा हो।
कुछ ही दिनों में पिगलक नामक सिंह पानी पीने नदी के पास आया। तभी
बैल ने जोर से हुंकार भरी जिससे सारा जंगल गूंज उठा।
पिगलक सिंह ने इसती भयंकर आवाज पहले कभी नहीं सुनी थी। वह
घबरा गया और बिना पानी पिए ही वहां से भाग खडा हुआ। उसे देख दूसरे
जंगली जानवर भी भाग खड़े हुए।
उसी जंमल में उस सिंह के मंत्री के दो पुत्र करटक व दमनक रहते थे। वे
अपने राजा का पूरा आदर करते थे। जैसे ही उन्होंने सिंह को नदी से प्यासा लौटते
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देखा तो दमनक बोला- " भाई करटक, हमारा स्वामी तो नदी किनारे से प्यासा
लौट आया। अब तो बेचारा बड़ा शर्मिंदा हुआ बैठा है। जंगल का राजा होकर वह।
पानी भी नहीं पी सका।"
करटक बोला- " भाई दमनक, हमें भला इन बातों से क्या लेना है। बड़े लोग
कह गए हैं जो भी दूसरों के काम में बिना मतलब अपनी टांग अड़ाता है वह बेमौत
मरता है। जैसे एक कील उखाड़ने वाले, बंदर की कहानी तुमने सुन रखी होगी।"
" नहीं भैया, मैंने तो उसकी कहानी नहीं सुनी।"
तो पहले यह कहानी सुन लो -