हीरे की कद्र जौहरी करे | पंचतंत्र की कहानियाँ
करटक बोला- " इस प्रकार वह बंदर अपनी ही मूर्खता से मर गया। जो
दूसरों के काम में टांग अड़ाता है, उसका यही हाल होता है, इसलिए कहता हूँ
कि सिंह को भूल जाओ और अपनी चिंता करो। हम झंझट में क्यों फंसे?"
दमनक उसकी बात से चिढ़कर बोला- " देखो भाई। यह ठीक नहीं, मित्रों
का भला और शत्रुओं की हानि करने के लिए ही बुद्धिमान जन राजा का सहारा
लेते हैं। पेट कौन नहीं भर लेता? जिनके जीते रहने से अन्य बहुत से लोग भी
जीवित रह सकें, उसी को जिंदा कहना चाहिए। अन्यथा क्या पक्षी भी चोंच से
अपना पेट नहीं भर लेता? जो प्राणी दूसरों के दुख में काम न आए उसका जीना
बेकार है।
उस पुत्र के उत्पन्न होने का क्या लाभ जो वंश में अग्रणी नहीं होता। नदी
तट पर उपजे उस घास झुंड का भी जन्म सार्थक है, जिसको पकड़कर डूबता
प्राणी किनारे आ लगता है। मनुष्य चाहे कितना ही ताकतवर हो पर यदि उसकी
ताकत प्रकट नहीं है तो लोग उसका अपमान करते है, जैसे लकड़ी के अंदर
व्याप्त आग को सब लोग लांघ जाते हैं, पर जब वह आग प्रकाट हो तो कोई
उसके पास जाने का साहस नहीं करता।"
करटक ने अपने भाई की बातों को बड़े धैर्य से सुना और फिर बोला- " यह
सब ठीक है, किन्तु हम कर भी क्या सकते हैं। फिर हमें इस बात से क्या
प्रयोजन? देखो कहा गया है, साथ ही वह अपमानित भी होता है। इसलिए अपनी
बात वहाँ कहनी चाहिए जहाँ उसकी कद्र हो, क्योंकि ऐसी जगह बात करने का
ऐसा प्रभाव होता है जैसे सफेद कपड़े पर रंग चढ़े।"
दमनक ने करटक की बात सुनते ही कहा-नहीं भाई, ऐसा ना कहो क्योंकि
विद्वानों, बुद्धि जीवियों, बहादुरों का सम्मान राजा के सिवा और कोई नहीं कर
सकता। जो मनुष्य अपनी उच्च जाति आदि के अभिमान में डूबकर राजाओं के
पास नहीं जाते, वे असफलता और निराशा के सिवा कुछ भी नहीं कर पाते। राजा
का सहारा लेकर ही बुद्धिमान लोग उचित स्थान पाते हैं। "
" भाई दमनक, आखिर तुम कहना क्या चाहते हो? "
" मैं तुमसे केवल यह कहना चाहता हूँ कि आज हमारा मालिक और
उसका परिवार डरा हुआ है, उसके पास जाकर भय का कारण जानना फिर संधि,
पालन
विरोध, लड़ाई, हमला करना या चुप रहकर मौके की तलाश करना किसी
ताकतवर का सहारा लेना, राजनीति के यह दांव पेंच हैं। मेरे भाई, इनमें से कोई
भी दांव लगाया जा सकता है। "
44" मगर भाई, तुमने यह कैसे जाना कि हमारा मालिक डरा हुआ है। करटक जिस
सकत
ने पूछा।
नौकर
" मेरे भाई, कही हुई बात को तो पशु भी भांप लेते है, मगर जो बुद्धिमान
है वे बिना कही बात को भी चेहरे से जान जाते हैं-आकार, मुख की बनावट,
इशारा, चाल-ढाल, बोल-चाल, आँख द्वारा मन के अन्दर की बात जानी जाती हैं, विचा
इसलिए मैंने यह सब जान लिया है। मैं निडर होकर सिंह के पास जाऊंगा और जाते
उसकी पूरी-पूरी सहायता करूंगा। देता
" मगर भाई, आपको तो अभी राज-दरबार में जाना ही नहीं आता तो आप
सेवा कैसे करेंगेय करटक बोला। और
दमनक ने हंसकर उत्तर दिया, वाह। मैं क्या राजा की सेवा करना नहीं
कहा
जानता। पिता जी की गोद में खेलते हुए मैंने घर में आने वाले साधु-सन्यासियों
की और विद्वानों की बातें सुनी थी। वे सब की सब मैंने दिल में बैठा ली थी। "
" हाँ भैया! मैं यह बात जानता हूं और साथ में यह भी जानता हूं कि मनुष्य
अपनी तीव्र बुद्धि से ही इन सबको मात देकर अप रास्ता स्वंय बनाता है।
बुद्धिमान व्यक्ति जब राजा तक पहुँच जाते हैं तो खुशामदी लोग राजा की नजरों
से गिर जाते हैं। "
करटक ने कहा-ठीक है यदि भाई तुम्हारे यही विचार हैं तो तुम अवश्य
यहीं करो, जो तुमने सोचा है।" प्रभ
फिर दमनक हंसा और उस शेर की ओर चल दिया।
शेर ने जैसे ही दमनक को अपनी ओर आते देखा तो अपने मंत्री से कहा -
" देखो वह हमारे पुराने मंत्री का पुत्र आ रहा है, उसे आदर से हमारे पास लाओ।"
बिठाकर शेर अपने जैसे प्यार पुराने ही दमनक से मंत्री उसकी शेर के पीठ के पुत्र सामने
पर को हाथ देखकर गया फेरते तो हुए बहुत उसने पूछा सिर खुश हुआ झुकाकर और
प्रणाम अपने किया पास।
दमनक " कहो मित्र बड़े कैसे हो, बहुत दिनों के पश्चात मिले हो।"
किन्तु हम आपको प्यार कैसे से बोला- " महाराज! भले ही आप हमें भूल गए हैं सकते हैं,
क्योंकि हम आपके पुराने वफादार हैं।
आज जब हमने आपको दुःख में घिरे उदास देखा तो हमसे रहा नही गया।
कठिनाई के समय में ही तो अपने पराए का पता चलता है। अपने कर्त्तव्य का
पालन करना हमारा फर्ज है महाराज, आप तो जानते ही हैं
आपने जो मुझसे पूछा कि बहुत दिनों बाद आए हो, इसका उत्तर तो यही
है कि जहा पर दाएं-बाएं में कोई अंतर न हो वहाँ पर बुद्धिमान रूके तो कैसे?
जिस देश में जौहरी न हो वहाँ पर सागर से निकले मोतियों की कीमत नहीं लग
सकती। जिनकी बुद्धि काँच को मणि और मणि को काँच समझती है उनके पास
नौकर नाममात्र को भी नहीं ठहरता।
जहाँ मालिक सब नौकरों से उनकी योग्यता और अयोग्यता आदि का
विचार न करके एक सा वर्ताव करता है, वहाँ पर बुद्धिमान सोवकों के दिल टूट
जाते हैं। न सेवकों के बिना राजा खुश होकर अपने वफादार सेवकों को इनाम ही
देता है, वही नौकर समय आने पर राजा के लिए अपनी जान न्यौछावर कर देते
हैं-। जो नौकर भूख, गर्मी, सर्दी आदि से नहीं घबराता, वही वफादार हो सकता है
और क्या कहूं महाराज! हीरे की कद्र तो जौहरी ही जानता है।
अब मैं यह तो नहीं कहता महाराज कि मैं हीरा हूँ किन्तु कुछ निवेदन करना चाहता हूँ। "
दमनक की ज्ञान भरी बातें सुनकर पिंगलक प्रभावित होकर बोला -
" तो फिर संकोच क्यों? जो कहना है कहो। "
महाराज! राजा का जो भी काम हो उसे सबके सामने नहीं, गुप्त रूप से
करना चाहिए, क्योंकि गुप्त बात छ: कानों में जाने से किसी भी मुसीबत का
कारण बन सकती है।"
पिंगलक ने दमनक की बात को बड़े ध्यान से सुना तो और अधिक
प्रभावित हुआ। उसने आँख के इशारे से वहाँ पर बैठे अपने सभी दरबारियों को
जाने से इशारा किया। सबके जाने के बाद दमनक ने पूछा -
" हे स्वामी! अब-आप बताओं कि जब नदी पर पानी पीने गए थे तो वापस
क्यों आ गए?"
शेर ने हंसकर कहा,-"वैसे ही ...।"
" देखिए महाराज! इस बात को छिपाइये मत, यदि यह कहने योग्य नहीं है
तो रहने दो, वैसे इस विषय पर कहा गया है-"
" बुद्धिमान को चाहिए कि संकट के समय अपने मित्रों व सम्बन्धियों से
गुप्त से गुप्त बात भी समय आने पर कह डाले।"
दमनक की बात सुनकर शेर सोच में पड़ गया क्योंकि उसकी बात में वजन
था। फिर वह सच्चा मित्र लग रहा था। मित्रों के बारे में कहा गया है
सच्चे मित्र, वफादार नौकर, बुद्धिमान स्त्री, दयालु कोमल हृदय मालिक के
आगे अपनी बात कहकर आदमी अपने दिल का बोझ हल्का कर लेता है।
इसीलिए शेर ने अपने मन की बात होंठो पर लाते हुए कहा -
' भद्र, मैं इस जंगल से जाना चाहता हूँ। "
" क्यों, जंगल के राजा होकर आप ऐसा क्यों सोच रहें है? "
" मेरे मित्र, मैं तुमसे क्या छिपाऊं। वास्तव में इस जंगल में कोई अद्भुत
जंतु आ गया है। वह मुझसे अधिक शक्तिशाली है। उसकी गरज ही इतनी भंयकर
है कि डर के मारे कलेजा हिल गया है। सोचो उसकी शक्ति कितनी होगी "
दमनक ने हंसकर शेर की ओर देखा, फिर बोला-" अपने पूर्वजनों द्वारा उपार्जित की
तो भी पोल आपकी डर इस है गया। बदनामी " वन था, को मगर होगी छोड़ना जब।
एक सत्य आपके बार सामने लिए मेरे साथ ठीक आया भी नहीं तो ऐसा।
एक बार मेरे साथ भी ऐसा ही हुआ था , एक आवाज से मैं भी डर गया था -
मगर सत्य सामने आया तो पता चला की यह तो ढोल की पोल हैं।
" वह कैसे शेर ने हैरान होकर पूछा। "
" सुनिए" -